| व्याकरणांशाः |
किमिह शृणुमः कस्य ब्रूमः कथंकृतमाशया | | | | | |
कथयत कथं धन्या मन्यामहे हृदयेशयम् । | | | | | |
मधुरमधुरस्मेराकारे मनोनयनोत्सवे | | | | | |
कृपणकृपणा तृष्णा कृष्णे चिरं बत लम्बते ॥ १.४२ ॥ | | | | | |
| किम्+इह, शृणुमः, कस्य, ब्रूमः, कथम्, कृतम्, आशया, कथयत, कथम्, धन्याः, मन्यामहे, हृदये-शयम्, मधुर-मधुर-स्मेर+आकारे, मनस्+नयन+उत्सवे, कृपण-कृपणा, तृष्णा, कृष्णे, चिरम्, बत, लम्बते |
| सन्धयः | | | | | |
| शृणुमः, ब्रूमः = ससजुषो रुः & खरवसानयोर्विसर्जनीयः & कुप्वोः ≍क≍पौ च |
| कथम्, चिरम् = मोऽनुस्वारः |
| स्मेर+आकारे = अकः सवर्णे दीर्घः |
| मनस्+नयन = ससजुषो रुः, हशि च, आद्गुणः |
| नयन+उत्सवे = आद्गुणः |
| आकाङ्क्षा-अन्वयः | | | | |
| बत कृष्णे कृपण-कृपणा तृष्णा किम्+इह शृणुमः कस्य ब्रूमः चिरम् लम्बते धन्याः कथयतु कथम् कृतम् आशया हृदये-शयम् मधुर-मधुर-स्मेर+आकारे मनस्+नयन+उत्सवे कथम् मन्यामहे |
| Alas! In whom do we disclose our eternal longing for Lord Śrīkṛṣṇa, from whom do we seek advice?Oh! Those blessed ones! Tell us how we can actualise our heart-felt desire and witness with our physical eyes the Lord resting in our hearts, the sweet, sweet form that is the embodiment of the God of Love creating a festival of delight in our mind's eye! |
| सुबन्तप्रक्रिया | | | | | |
| किम् = अव्ययम् | | | | | |
| इह= अव्ययम् |
| कस्य = किम्, पुं, ६.१, ङस्, किम्ः कः, टाङसिङसामिनात्स्याः |
| कथम् = अव्ययम् |
| कृतम् = अ, नपुं, २.१, अम्, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| आशया = आ, स्त्री, ३.१, टा, आङि चापः, एचोयवायावः |
| धन्याः = अ, पुं, १.३, सम्बोधनम्, जस्, प्रथमयोः पूर्वसवर्णः, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
| हृदये-शयम् = अ, पुं, २.१, अम्, अमि पूर्वः |
| मधुर-मधुर-स्मेर+आकारे = अ, पुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| मनस्+नयन+उत्सवे = अ, पुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| कृपण-कृपणा = आ, स्त्री, १.१, सुँ, हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यप्कृतं हल् |
| तृष्णा = = आ, स्त्री, १.१, सुँ, हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यप्कृतं हल् |
| कृष्णे = अ, पुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| चिरम् = अव्ययम् |
| बत= अव्ययम् |
| तिङन्तप्रक्रिया | | | | |
| शृणुमः = श्रु श्रवणे, भ्वादिः, परस्मैपदी, लट्, ३.३ |
| ब्रूमः = ब्रूञ् वक्तायां वाचि, परस्मैपदी (उभयपदी), लट्, ३.३ |
| कथयत = कथ, कथ वाक्यप्रबन्धे, चुरादिः, आत्मनेपदी (उभयपदी), लोट्, २.३ |
| मन्यामहे =मनँ ज्ञाने, दिवादिः, आत्मनेपदी, लट्, १.३ |
| लम्बते = लबिँ अवस्रंसने शब्दे च, भ्वादिः, लट्, १.१ |
| समासाः, तद्धिताः, कृदन्ताः | | | |
| हृदये-शयम् = हृदये शेते उपपद, तम् |
| मधुर-मधुर-स्मेर+आकारे = मधुरंःमधुरः आकारः यस्य सः बहुव्रीहिः, स्मेरस्य इव आकारः यस्य सः, उपमानबहुव्रीहिः |
| मनस्+नयन+उत्सवे = मनसः नयनं ६तत्, तस्य उत्सवं ६तत्, मनोनयनौत्सवं यस्य तस्मिन् बहुव्रीहिः |