| व्याकरणांशाः |
वक्षःस्थले च विपुलं नयनोत्पले च | | | | | |
मन्दस्मिते च मृदुलं मदजल्पिते च । | | | | | |
बिम्बाधरे च मधुरं मुरलीरवे च | | | | | |
बालं विलासनिधिमाकलये कदा नु ॥ १.६५ ॥ | | | | | |
| वक्षः+स्थले, च, विपुलम्, नयन+उत्पले, च, मन्द-स्मिते, च, मृदुलम्, मद-जल्पिते, च, बिम्ब+अधरे, च, मधुरम्, मुरली-रवे, च, बालम्, विलास-निधिम्, आकलये, कदा, नु |
| सन्धयः | | | | | |
| वक्षः+स्थले= ससजुषो रुः & खरवसानयोर्विसर्जनीयः & वा शरि |
| विपुलम्, मृदुलम्, मधुरम्, बालम् = मोऽनुस्वारः |
| नयन+उत्पले = आद्गुणः |
| बिम्ब+अधरे = अकः सवर्णे दीर्घः |
| आकाङ्क्षा-अन्वयः | | | | |
| आकलये कदा नु वक्षः+स्थले च विपुलम् नयन+उत्पले च मन्द-स्मिते च मृदुलम् मद-जल्पिते च बिम्ब+अधरे च मधुरम् मुरली-रवे च बालम् विलास-निधिम् |
| Oh, when, indeed, will I get to see and immerse myself in Bhagavān Ṣrīkṛṣṇa who is expansive in His chest as well as His lotus-like eyes, soft and sweet in His gentle smile as well as His endearing speech, alluring in His Bimba-like lips as well as His flute music; indeed the youth who is the reservoir of delightful sport? |
| सुबन्तप्रक्रिया | | | | | |
| वक्षः+स्थले = अ, नपुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| च = अव्ययम् |
| विपुलम् = अ, पुं, २.१, अम्, अमि पूर्वः |
| नयन+उत्पले= अ, नपुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| मन्द-स्मिते= अ, नपुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| मृदुलम्= अ, पुं, २.१, अम्, अमि पूर्वः |
| मद-जल्पिते= अ, नपुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| बिम्ब+अधरे= अ, नपुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| मधुरम्= अ, पुं, २.१, अम्, अमि पूर्वः |
| मुरली-रवे= अ, पुं, ७.१, ङि, आद्गुणः |
| बालम्= अ, पुं, २.१, अम्, अमि पूर्वः |
| विलास-निधिम्= इ, पुं, २.१, अम्, अमि पूर्वः |
| कदा = अव्ययम् |
| नु = अव्ययम् |
| तिङन्तप्रक्रिया | | | | |
| आकलये =आङ्+ कल गतौ सङ्ख्याने च, चुरादिः, आत्मनेपदी (उभयपदी), लट्, ३.१ |
| समासाः, तद्धिताः, कृदन्ताः | | | |
| वक्षः+स्थले = वक्षसः स्थलम्, तस्मिन् ६तत् |
| नयन+उत्पले= नयनम् उत्पलमिव क.धा, तस्मिन् |
| मन्द-स्मिते= मन्दम् स्मितम् क.धा, तस्मिन् |
| मद-जल्पिते= मदेन जल्पितम् ३तत्, तस्मिन् |
| बिम्ब+अधरे= अधरं बिम्बमिव क.धा, तस्मिन् |
| मुरली-रवे= मुरल्याः रवः ६तत्, तस्मिन् |
| विलास-निधिम्= विलासस्य निधिः ६तत्, तस्मिन् |