| व्याकरणांशाः |
बर्हं नाम विभूषणं बहुमतं वेषाय शेषैरलं | | | | | |
वक्त्रं द्वित्रविशेषकान्तिलहरीविन्यासधन्याधरम् । | | | | | |
शिल्पैरल्पधियामगम्यविभवैः शृङ्गारभङ्गीमयं | | | | | |
चित्रं चित्रमहो विचित्रितमहो चित्रं विचित्रं महः ॥ १.५८ ॥ | | | | | |
| बर्हम्, नाम, विभूषणम्, बहुमतम्, वेषाय, शेषैः, अलम्, वक्त्रम्, द्वित्र-विशेष-कान्ति-लहरी-विन्यास-धन्य+अधरम्, शिल्पैः+अल्प-धियाम्, अगम्य-विभवैः, शृङ्गार-भङ्गी-मयम्, चित्रम्, चित्रम्, अहो, विचित्रितम्, अहो, चित्रम्, विचित्रम्, महः |
| सन्धयः | | | | | |
| विनिर्जित+अम्बुज, पद्म+आलया+आलङ्कृतौ, विषय+अतिलङ्घितम् = अकः सवर्णे दीर्घः |
| वाक्+विषय = झलां जशोऽन्ते |
| एतत्+महः = यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा |
| महः = ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
| भाजनम्, वक्त्रम्, मृगदृशाम् = मोऽनुस्वारः |
| आकाङ्क्षा-अन्वयः | | | | |
| बर्हम् नाम विभूषणम् बहुमतम् वेषाय शेषैः अलम् वक्त्रम् द्वित्र-विशेष-कान्ति-लहरी-विन्यास-धन्य+अधरम् शिल्पैः+अल्प-धियाम् अगम्य-विभवैः शृङ्गार-भङ्गी-मयम् चित्रम् चित्रम् अहो विचित्रितम् अहो चित्रम् विचित्रम् महः |
| Wonderfully magnificient is this picture of Bhagavān Ṣrīkṛṣṇa- His peacock feather alone is enough to adorn His head, no special headgear is needed; in His face, the red and white tilaka marks alone are a splendid decoration, and His beautiful lips are blessed with beauty; no ordinary sculptors can ever come up with a figure of such perfect posture and beauty; this picture is breathtaking indeed, a creation beyond description, what more can I say!? |
| सुबन्तप्रक्रिया | | | | | |
| बर्हम् = अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| नाम= अव्ययम् |
| विभूषणम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| बहुमतम्= अव्ययम् |
| वेषाय = अ, पुं, ४.१, ङे, ङेर्यः, सुपि च |
| शेषैः = अ, पुं, ३.३, भिस्, अतो भिस ऐस्, वृद्धिरेचि, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
| अलम्= अव्ययम् |
| वक्त्रम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| द्वित्र-विशेष-कान्ति-लहरी-विन्यास-धन्य+अधरम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| शिल्पैः =अ, पुं, ३.३, भिस्, अतो भिस ऐस्, वृद्धिरेचि, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
| अल्प-धियाम् = ई, पुं, ६.३, आम्, अचि श्नुधातुभ्रुवां य्वोरियङुवङौ |
| अगम्य-विभवैः= अ, पुं, ३.३, भिस्, अतो भिस ऐस्, वृद्धिरेचि, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
| शृङ्गार-भङ्गी-मयम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| चित्रम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| अहो = अव्ययम् |
| विचित्रितम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| विचित्रम्= अ, नपुं, १.१, सुँ, अतोऽम्, अमि पूर्वः |
| महः = स्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात्, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः |
| तिङन्तप्रक्रिया | | | | |
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| समासाः, तद्धिताः, कृदन्ताः | | | |
| द्वित्र-विशेष-कान्ति-लहरी-विन्यास-धन्य+अधरम्= द्वेः अथवा त्रयः द्वित्रः केवलसमासः; द्वित्रयः विशेषः विन्यासः क.धा, कान्त्याः लहरिः ६तत्, तया विन्यासः ३तत्, तेन धन्यम् ३तत् अधरम् क.धा |
| अल्प-धियाम् = अल्पा धीः येषां तेषाम् बहुव्रीहिः |
| अगम्य-विभवैः= अगम्याः विभवाः क.धा, तैः |
| शृङ्गार-भङ्गी-मयम्= शृङ्गारः भङ्गी क.धा, तस्य भावः मयट् तद्धितः |