| व्याकरणांशाः |
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चातुर्यसीम चतुराननशिल्पसीम । | | | | | |
सौरभ्यसीम सकलाद्भुतकेलिसीम | | | | | |
सौभाग्यसीम तदिदं व्रजभाग्यसीम ॥ १.७३ ॥ | | | | | |
| चापल्य-सीम, चपल+अनुभव+एक-सीम, चातुर्य-सीम, चतुर+आनन-शिल्प-सीम, सौरभ्य-सीम, सकल+अद्भुत-केलि-सीम, सौभाग्य-सीम, तद्, इदम्, व्रज-भाग्य-सीम |
| सन्धयः | | | | | |
| चपल+अनुभव = अकः सवर्णे दीर्घः |
| अनुभव+एक = वृद्धिरेचि |
| चतुर+आनन = अकः सवर्णे दीर्घः |
| सकल+अद्भुत = अकः सवर्णे दीर्घः |
| तद्+इदम् = झलां जशोऽन्ते |
| आकाङ्क्षा-अन्वयः | | | | |
| तद् इदम् व्रज-भाग्य-सीम चापल्य-सीम चपल+अनुभव+एक-सीम चातुर्य-सीम चतुर+आनन-शिल्प-सीम सौरभ्य-सीम सकल+अद्भुअकेलि-सीम सौभाग्य-सीम |
| That phenomenon - our experiencing Bhagavān Ṣrīkṛṣṇa - is this, the ultimate good fortune showered on Vraja! How do we say this? This is how - it provokes the ultimate craving in us for this joy (nothing else as a temptation compares)...and it fulfills that craving like nothing else; it is the display of greatest cleverness on display; it is Brahma's magnum opus in creation - a perfect being; it is the most fragrant experience in terms of an ethereal fulfilment; it is the greatest example of an assembly for celebrations among living beings; and it is the manifestation of Goddess Lakshmi herself in terms of its abundance of grace and joy! |
| सुबन्तप्रक्रिया | | | | | |
| तद् = तद्, सर्वनाम, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| इदम्= इदम्, सर्वनाम, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| चापल्य-सीम = न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| चपल+अनुभव+एक-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| चातुर्य-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| चतुर+आनन-शिल्प-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| सौरभ्य-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| सकल+अद्भुत-केलि-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| सौभाग्य-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| व्रज-भाग्य-सीम= न्, नपुं, १.१, सुँ, स्वमोर्नपुंसकात् |
| तिङन्तप्रक्रिया | | | | |
| (अस्ति) अध्याहारः = असँ भुवि, अदादिः, परस्मैपदी, लट्, १.१ |
| समासाः, तद्धिताः, कृदन्ताः | | | |
| चापल्य-सीम = चपलस्य भावः ष्यञ् तद्धितः, तस्य सीम ६तत् |
| चपल+अनुभव+एक-सीम= चपलस्य अनुभवः ६तत्, तस्य ६तत् एकं सीम क.धा |
| चातुर्य-सीम= चतुरस्य भावः ष्यञ् तद्धितः, तस्य सीम ६तत् |
| चतुर+आनन-शिल्प-सीम= चत्वारि आननानि यस्य सः बहुव्रीहिः, तस्य शिल्पम् ६तत्, तस्य सीम ६तत् |
| सौरभ्य-सीम= सुरभेः भावः ष्यञ् तद्धितः, तस्य सीम ६तत् |
| सकल+अद्भुत-केलि-सीम= सकलानि अद्भुतानि क.धा, तेषां केलिः ६तत्, तस्य सीम ६तत् |
| सौभाग्य-सीम= सुभगस्य भावः ष्यञ् तद्धितः, तस्य सीम ६तत् |
| व्रज-भाग्य-सीम= व्रजस्य भाग्यः ६तत्, तस्य सीम ६तत् |