व्याकरणांशाः |
मूलम् | | | | |
लक्ष्म्याः प्रियोऽसि रतिकेलिकृतः पितासि विश्वैकमोहनरसस्य च देवतासि | |
आवासभूमिरसि सर्वगुणोत्तमानां वैकुण्ठ वर्णयतु कस्तव रूपरेखाम् ॥ १५॥ |
पदच्चेदः | | | | | |
लक्ष्म्याः, प्रियः, असि, रति-केलि-कृतः, पिता, असि, विश्व-एक-मोहन-रसस्य, च, देवता, असि, आवासभूमिः, असि, सर्व-गुण-उत्तमानाम्, वैकुण्ठ, वर्णयतु, कः तव, रूप-रेखाम् |
सन्धयः | | | | | |
लक्ष्म्याः, रति-केलि-कृतः - ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्ज्नीयः | | | | | |
प्रियः असि - ससजुषो रुः, अतो रोरप्लुतादपलउते, आद्गुणः, एङः पदान्तादति | | | | | |
पिता असि, देवता असि - अकः सवर्णे दीर्घः | | | | | |
विश्व-एक-मोहन-रसस्य- - वृद्धिरेचि | | | | |
आवासभूमिः असि - ससजुषो रुः | | | | | |
सर्व-गुण-उत्तमानाम् - आद्गुणः | | | | | |
कः तव - ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः, विसर्जनीयस्य सः | | | | | |
आकाङ्क्षा-अन्वयः | | | | |
वैकुण्ठ! (त्वं) लक्ष्म्या प्रियः असि,रति-केलि-कृतः पिता असि विश्व-एक मोहन-रसस्य च देवता असि, सर्व-गुण-उत्तमानाम् आवासभूमिः असि। (अतः) तव रूप-रेखाम् कः वर्णयतु | |
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सुबन्तप्रक्रिया | | | | | |
लक्ष्म्याः - ई स्त्री, ६.१, ङस्, आण्नद्याः, आटश्च, इको यणचि | | | | | |
प्रियः - अ पुं, १,१, सुँ, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः | | | | | |
रति-केलि-कृतः, त्, पुं, ६.१, ङस्, वर्णमेलनम्
पिता - ऋ, पुं, १.१, सुँ, ऋदुशनस्पुरुदंसोऽनेहसां च, | | | | | |
अप्तृन्तृच्स्वसृनप्तृपेष्टृत्वष्टृक्षत्तृहोतृपोतृप्रशास्तॄणाम्,, हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यप्कृतं हल्, नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य | |
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च - अव्ययम्, | | | | | |
देवता - आ स्त्री, १.१, सुँ, हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यप्कृतम् हल् | | | | | |
आवासभूमिः - इ स्त्री, १.१, सुँ, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः | | | | | |
सर्व-गुण-उत्तमानाम् - अ पुं, ६.३, आम्, ह्रस्वनद्यापो नुट्, नामि | | | | | |
वैकुण्ठ - अ पुं, १.१ सम्, सुँ, एङ्ह्रस्वात् सम्बुद्धेः | | | | | |
कः - किम्, सर्वनाम पुं, १.१, सुँ, किमः कः, ससजुषो रुः, खरवसानयोर्विसर्जनीयः | | | | | |
रूप-रेखाम् - आ स्त्री, २.१, अम् - अमि पूर्वः | | | | | |
तव - तव - युष्मद्, ६.१, ङस्, युष्मदस्मद्भ्यां ङसोऽश्, तवममौ ङसि, अतो गुणे, शेषे लोपः | | | | | |
विश्व-एक-मोहन-रसस्य - अ पुं, ६.१ ङस्, टाङसिङसामिनात्स्याः | | | | | |
तिङन्तप्रक्रिया | | | | | |
असि - अस्, अदादि, परस्मैपदी. लट्, मध्यमपुरुषः एकवचनम् | | | | | |
वर्णयतु - वर्ण, चुरादि, परस्मैपदी, लोट्, प्रथमपुरुषः, एकवचनम् | | | | | |
समासाः, तद्धिताः, कृदन्ताः | | | | |
रति-केलि-कृत् - रतेः केलिः, षष्ठीतत्पुरुषः, तस्याः कृत् - षष्ठीतत्पुरुषः | | | | | |
विश्व-एक-मोहन-रसस्य - मोहन रसः - कर्मधारयः, एक मोहन रसः - कर्मधारयः, विश्वस्य एकमोहनरसः, तस्य षष्ठीतत्पुरुषः | | | | | |
आवास भूमिः - आवासश्च भूमिश्च - आवासभूमिः - कर्मधारयः | | | | | |
सर्वगुणउत्तमानाम् - सर्वः गुणः सर्वगुणः कर्मधारयः, सर्वगुणानाम् उत्तमाः - षष्ठीतत्पुरुषः, तेषाम् | | | | |